चौराहों का आवंटन और बेरोजगारी का निराकरण

यह विषय मेरे
दिमाग मैं कई सालों से उठ रहा था कि इस देश का क्या होगा, चौराहे कम और नेता ज्यादा। इस समस्या पर कोई भी ध्यान नहीं दे रहा है।जब तक कोई आंदोलन नहीं करेगा ,तब तक कोई हल नहीं निकलेगा।
शायद इसका हल मुझे ही निकालना पड़ेगा , यह सोचकर घर के कबाड़खाने में कागज पैन लेकर
बैठ गया। आप सोचेंगे कबाड़खाने को मैने इस समस्या का हल खोजने के लिये क्यों चुना ?
आप गौर करें, कि हमारे नेतागण देश के नेता बड़ी से
बड़ी समस्या का हल अपने कार्य क्षेत्र में मछली बाजार सा माहौल पैदा करके ही
निकालते हैं अतः कबाड़खाने से अच्छी कोई जगह नहीं होगी ,चौराहौं का हल निकालने के लिये।
कुछ समय पहले
किसी नेता का देहान्त हो गया और उनके परम चमचे श्रद्धांजलि देने के दौरान जोश में
आ गए और कह बैठे , नेताजी की कांसे की मूर्ति
चौराहे पर लगाई जायेगी और उस चमचे के चमचे ने उसका अनुमोदन भी कर दिया।
अब शुरु हुआ
परेशानी का दौर, सरकार में बैठे सिपहसलारों के
लिए। चौराहे तो अब बचे नही है, सब कद्ददावर नेताओं की मूर्तियों से भरे जा चुके हैं, अब इन नेताजी को कहाँ जगह दी
जाये। इस समस्या का जिक्र मुझसे किया गया। क्योंकि मैं फालतू था और अच्छे
से सोच सकता था जुट गया, हल निकालने के लिये।
बड़े बुजुर्ग कहते हैं
किसी भी अच्छे काम की शुरुआत भगवान के नाम से करनी चाहिए, सो ॐ लिख दिया कागज के बीचों बीच। जैसे ही ॐ
लिखा और गणपति जी का स्मरण किया, कसम से पहला हल आया, चौराहे अगर नहीं बचे तो तिराहे क्या बुरे हैं। क्या खाली तिराहा ही इस समस्या का हल नहीं हो सकता और भी पहलू है जिसको नजर अंदाज नहीं
कर सकते क्योंकि तिराहे भी नेताओं की मूर्ति के लिए काफी नहीं होंगे।
तभी मेरे
दिमाग की धंटी बजी और विचार आया। क्यों न सीघी जाने
वाली सड़क के दोनों ओर पर भी नेताओं के पुतले लगाये जा सकते हैं । मैं यह सोच
ही रहा था तभी एक मोटा सा चूहा छोटे चूहे का पीछा करता हुआ भागा। कहते हैं अगर काम
की शुरुआत सही की जाये तो फल अच्छा होता है। तुरंत दिमाग मैं आया नेताओ का
वर्गीकरण किया जाये । जैसे देश के बड़े नेता के लिये "वी आई पी" चौराहा , छोटे नेता के लिये "आम चौराहा" , लोकल नेता के
लिये "तिराहा" और छुटके नेता के लिये "सीघी सड़क" पर जगह निर्धारित कर दी जाये और
कुछ नामी नेताऔ को "उद्यानों" में भी जगह दी जाये । नेताओं को यह विशेष सुविधा दी जाये की वो अपने जीवनकाल में , अपनी मूर्ति की जगह अवांगटित हो जाने पर , उस जगह का सौन्दर्यीकरण अपने तरीके से करवा सकते हैं जिससे बाद में कोई दुर्गति न हो।
समस्या का हल
निकल आया था पर नेताओ की किस्मत इतनी खराब
थोड़ी है जो मुझ जैसे आम व्यक्ति की बात सुने। न जाने उन्हें मेरे सुझावों के बारे
में कैसे पता चल गया। देश की एक कद्दावर
महिला नेता को लगा कि पता नहीं उनकी मूर्ति
लगेगी या नहीं, चमचे साथ देंगे या नहीं। उनका दिमाग ज्यादा तेजी से चला और उन्होंने और खुद की मूर्ति बाग मैं मेरे सुझाव के अनुसार ,लगाने का फैसला ले लिया । इससे दो फायदे हुए। मूर्ति लगने
के साथ साथ काफी पैसा भी तिजोरी मै आ गया और क्योंकि खर्चा ज्यादा नहीं हो रहा था , इसलिए नेत्री ने अपने साथ साथ अपने परिवार के सदस्यों की भी मूर्तियाँ भी पार्क में लगवा दी और लक्ष्मी जी के वाहन को भी जगह जगह खड़ा कर दिया | कद्दावर नेत्री अब स्वयं अपनी मूर्ति पर माला पहनाती है क्योंकि उन्हें विश्वास नहीं है की चमचे उनके बाद उनकी मूर्ति का भी ध्यान रखेंगे भी की नहीं |

मेरे सुझाव
इतना प्रभावशाली होगा मैने कभी सोचा भी न था। सरकार के सिपहसालारों को थोड़ी राहत
मिल गई और मूर्ति के लिए चौराहे का चयन कर लिया |
अभी इस समस्या हल भी नहीं हुआ था कि एक नेता जी को उनके पिताश्री ,पूर्व दिवंगत कद्दावर नेता की मूर्ति लगाने का ख्याल आया , जिनका राजनीति में काफी वर्चस्व था | चौराहो की खोजबीन शुरु हुई | नोनिहाल पुत्र ने अपने चमचों को खोजने में लगाया पर कोई चौराहा नजर नहीं आया जहाँ पर मूर्ति लगायी जा सके | हम भी इसी उधेड़बिन में थे कि कुछ नजर आ जाये, तो कुछ हमारे भी नंबर बन जायें | पर दिमाग इतना खाली हो गया था कि उसमे भूंसा भी नहीं बचा था |
मानना पड़ेगा नेता जी के चमचों को, जिनका दिमाग चल ही गया और एक चौराहा खोज निकाला | चौराहे पर क्रन्तिकारी चंद्रशेखर आजाद की छोटी अदना सी मूर्ति लगी थी जिसे देखकर वहां से गुजरते हर राहगीर का मस्तक आजादी के इस वीर क्रन्तिकारी के लिए झुक जाता था। पर हमारे देश मैं नेताओं को यह ग़लतफ़हमी है कि आजादी नेताओ के त्याग से मिली न की क्रन्तिकारी के आंदोलनों से और ऐसे क्रन्तिकारी की मूर्ति का शहर के मुख्य चौराहे पर होना उन्हें सही नहीं लगा। उसे हटा कर अपने नेता की मूर्ति लगवा दी। पर विपक्ष भी कोई कमजोर नहीं था। आंदोलन कर उसे हटवा दिया और उचित जगह की खोज में सब फिर जुट गए ।
इसी बीच मेरे मन में एक धांसू विचार आया जिससे मूर्ति के साथ साथ बेरोजगारी की समस्या का भी हल निकल जायेगा। आप सब पाठक मेरे अपने हैं इसलिए सरकार या नेताओ को बताने से पहले ,आप से ही साझा करता हूँ। मेरे विचार से यदि मूर्ति पर पैसा बर्बाद करने के बजाये यदि बेरोजगारो को मौका दिया जाये तो बहुत अच्छा होगा। हर मूर्ति की जगह, जरूरतमंद नेता का भेष धारण कर आठ आठ घंटे की शिफ्ट में मूर्ति की जगह बेरोजगार ले लेंगे और इस तरह उन्हें रोजगार मिल जायेगा और सरकार को भी थोड़ी रहत भी मिल जाएगी। यदि मेरा सुझाव सरकार को पसंद आया तो इस सलाह के लिए में कोई राशि नहीं लूँगा बस मुझे भी उचित सम्मानित जगह पर खड़े होने का मौका मिले जिससे मेरी भी बेरोजगारी की समस्या का हल निकल जाये। आप लोगों को यदि मेरा प्रस्ताव सही लगे और आप में से जो भी इस योजना से जुड़ना चाहें मुझसे संपर्क कर सकते हैं आप के लिए उचित स्थान की व्यवस्था में करवा दूंगा ।
इस योजना में आप सबका स्वागत है