Friday, 8 December 2023

सकारात्मक सोच

 🌹🌹"सकारात्मक सोच"🌹🌹

***अक्सर हमारी  सकारात्मक /नकारात्मक सोच आसपास के लोगों को प्रभावित कर जाती है और इस रवैये कि वजह से उनके आस पास नकारात्मकता फेल जाती हैं और वो हर वक्त इसके कारण प्रभावित होते  रहते हैं l मेरा अनुभव सकारात्मक से जुड़ा हुआ किस प्रकार बदलाव लाता है प्रस्तुत हैं *****                                                    ****रविंद्र गोपाल निगम 

         मैं ओरिएंट पेपर मिल, शहडोल में पावर हाऊस मैं कार्यरत था जहाँ पर तरह तरह की मशीने लगी थी। कार्य के दौरान कर्मचारियों और मशीनो की सुरक्षा के लिये हमेशा चौकन्ना रहना पड़ता था।   रोज पारी के शुरु होने पर हर कर्मचारियों को काम उनकी क्षमता के आघार पर दिया करता था। 

          कर्मचारियों मैं गुरदयाल सिग ,जो कि फिटर था और   एयर कंप्रेसर के रखरखाव का काम देखा करता था और साथ ही वो कर्मचारी यूनियन मैं सचिव पद पर था और इसकी घौस वो अपने साथ के कर्मचारियों और अधिकारियों को अक्सर देता रहता था। वो परिसर मे रोज मदिरापान करके आता था। जिससे अन्य कर्मचारी और अन्य अधिकारी के लिये  सिरदर्दी बना हुआ था l     

        एयर कंप्रेसर के कार्य की उपयोगिता एवं उसके व्यवहार को देखते हुए , उसके साथ एक  ट्रेनी फिटर को उसके साथ दिया हुआ था जिससे पावर प्लांट का कार्य उसकी गैरहाजिरी में बाधित न हो।

        काफी दिनों तक कार्य यूँ ही चलता रहा। चूकि कार्य मै कोई समस्या नही आ रही थी, इसलिए  रोज रजिस्टर मे ,गुरदयाल के नाम पर कार्य दर्ज कर दिया जाता था। रूटीन चेक के दौरान अक्सर ट्रेनी फिटर ही कार्य करता नजर आ जाता था । बहुत दिनों तक यू ही चलता रहा और मैने भी ज्यादा गौर नहीं किया।

        एक दिन मेरा विश्वसनीय कर्मचारी मुझे साथ लेकर पावर प्लांट के टरबाइन सैक्शन में लगे हुये पावर पेनल के पास ले गया और मुझसे पीछे चेक करने को कहा। गुरदयाल सिग पैनल के पीछे गहरी नीद में सो रहा था और उसके पास से शराब की तेज बदबू आ रही थी। यदि मै उसे , उस समय उठाता तो मामला बिगड़ जाता इसलिए मैं वहाँ से हट गया और दूसरे कर्मचारी को उसे उठाने को भेज दिया। 

      अगले दिन से मैने जाब रजिस्टर में ट्रेनी फिटर को काम एलाट करना शुरु कर दिया और गुरदयाल सिग के नाम के आगे लकीर खीचना शुरु कर दिया और साथ ही ट्रेनी फिटर को काम से सम्बन्धित हिदायत भी देने लगा। काफी दिनों तक ऐसा  ही चलता रहा। गुरदयाल हमेशा की तरह कार्य के दौरान पावर पैनल के पीछे सोता रहा। इसी बीच गुरदयाल के किसी साथी ने उसे इस बारे मे सब बताया। 

      गुरदयाल चूकि कर्मचारी यूनियन में सचिव था, अपने साथियों के साथ पावर प्लांट के चीफ इन्जीनियर श्री अशोक पांडे जी के आफिस पहुँच कर हंगामा करने लगा कि मैं निगम सर का खून कर दूँगा और पता नहीं क्या क्या । चीफ इन्जीनियर क्योंकि मेरे काम से वाकिफ थे, उसे समझाने की कोशिश करते रहै और मुझे आफिस मै बुलावा भेजा। तब तक  उन्हें मेरे द्वारा लिये गये एक्शन का कुछ पता नही था। 

         गम्भीरता को देखते हुए में तुरंत उनके आफिस पहुँच गया। गुरदयाल मुझे देखते ही गालीगलोज करने लगा। चीफ इंजीनियर ने इस मामले के बारे में मुझसे जानकारी मांगी। 

      मैने उनसे सवाल किया कि यदि किसी कर्मचारी के साथ कार्य के दौरान दुर्घटना हो जाती है तो किसकी जिम्मेदारी बनती है। वो तुरंत बोले क्योंकि तुम पावर प्लांट का रखरखाव देखते हो इसलिए सारी जिम्मेदारी तुम्हारी ही बनती है। कर्मचारी के साथ हुई किसी भी दुर्घटना के लिये  सबसे पहले तुमसे ही पूछा जायेगा।

        तब मैने विस्तार से  उन्हें सब  जानकारी दी कि किस तरह शराब पीकर कार्य के दौरान पावर प्लांट के पैनल के पीछे सो जाते है जो कि सुरक्षा की दृष्टि काफी संवेदनशील इलाका होता है। और किसी भी तरह की दुर्घटना मे मौत निश्चित है। इसीलिए गुरदयाल के नाम के आगे लाईन खीच देता हूँ और इनके सहयोगी से रखरखाव का कार्य करवाता हूँ जिससे पावर प्लांट सुचारु रूप से चलता रहे।

    मेरी ये बात सुनकर गुरदयाल जो हंगामा कर रहा था। बिलकुल शांत हो गया और हाथ जोड़ कर माफी मांगने लगा। उसने सबके सामने अपनी गलती कबूल की और भरोसा दिखाया कि भविष्य मे कोई ऐसा मौका नही देगा। अगले दिन से ही उसके व्यवहार में बहुत बदलाव आया और वो  मेरा विश्वासपात्र बन गया। 

    इस सारे प्रकरण के बाद अन्य कर्मचारी भी मेरे करीब आ गये। कयोंकि यदि मे गुरदयाल के खिलाफ  अनुशासनिक कार्यवाही करता तो शायद उसे बरखास्त कर दिया जाता और वेतन भी काट लिया जाता जिसका प्रभाव सीघा उसके परिवार पर पड़ता। मेरी इस सकारात्मक सोच की वजह से न सिर्फ कर्मचारियों का मुझ पर भरोसा बना वरन उनकी कार्य क्षमता में भी सुधार आया। 


Monday, 14 September 2020

चौराहों का आवंटन और बेरोजगारी का निराकरण



       
                           चौराहों का आवंटन और बेरोजगारी का निराकरण 


        यह विषय मेरे दिमाग मैं कई  सालों से उठ रहा था कि इस देश का क्या होगा, चौराहे कम और नेता ज्यादा। इस समस्या पर कोई भी ध्यान नहीं दे रहा है।जब तक कोई आंदोलन नहीं करेगा ,तब तक कोई हल नहीं निकलेगा। 
       शायद इसका हल मुझे ही निकालना पड़ेगा , यह सोचकर घर के कबाड़खाने में कागज पैन लेकर बैठ गया। आप सोचेंगे कबाड़खाने को मैने इस समस्या का हल खोजने के लिये क्यों चुना ? आप गौर करें, कि हमारे नेतागण देश के नेता बड़ी  से बड़ी समस्या का हल अपने कार्य क्षेत्र में मछली बाजार सा माहौल पैदा करके ही निकालते हैं अतः कबाड़खाने से अच्छी कोई जगह नहीं होगी ,चौराहौं का हल निकालने के लिये। 
         कुछ समय पहले किसी नेता का देहान्त हो गया और उनके   परम   चमचे  श्रद्धांजलि देने के दौरान जोश में आ गए और कह बैठे , नेताजी की कांसे की मूर्ति चौराहे पर लगाई जायेगी और उस चमचे के चमचे ने उसका अनुमोदन भी कर दिया। 
       अब शुरु हुआ परेशानी का दौर, सरकार में बैठे सिपहसलारों के लिए। चौराहे तो अब बचे नही है, सब कद्ददावर नेताओं की मूर्तियों   से भरे जा चुके हैं, अब इन नेताजी को कहाँ जगह दी जाये। इस समस्या का जिक्र मुझसे किया गया। क्योंकि मैं फालतू था और अच्छे से सोच सकता था जुट गया, हल निकालने के लिये। 
        बड़े बुजुर्ग कहते हैं किसी भी अच्छे काम की शुरुआत भगवान के नाम से करनी चाहिए, सो  ॐ लिख दिया कागज के बीचों बीच। जैसे ही ॐ लिखा और गणपति जी का स्मरण किया, कसम से पहला हल आयाचौराहे अगर नहीं बचे तो तिराहे क्या बुरे हैं। क्या खाली  तिराहा ही इस समस्या का हल नहीं हो सकता और भी पहलू है जिसको नजर अंदाज नहीं कर सकते क्योंकि तिराहे भी नेताओं  की मूर्ति के लिए काफी नहीं होंगे। 
      तभी मेरे दिमाग की धंटी बजी और विचार आया। क्यों न सीघी जाने वाली सड़क के दोनों ओर  पर भी नेताओं के पुतले लगाये जा सकते हैं । मैं यह सोच ही रहा था तभी एक मोटा सा चूहा  छोटे चूहे   का पीछा करता हुआ भागा। कहते हैं अगर काम की शुरुआत सही की जाये तो फल अच्छा होता है। तुरंत दिमाग मैं आया नेताओ का वर्गीकरण किया जाये । जैसे देश के बड़े नेता के लिये "वी आई पी" चौराहा , छोटे नेता के लिये "आम चौराहा" , लोकल नेता के लिये "तिराहा" और छुटके नेता के लिये "सीघी  सड़क" पर जगह निर्धारित कर दी जाये और कुछ नामी नेताऔ को "उद्यानों"  में भी जगह दी जाये । नेताओं को यह विशेष सुविधा दी जाये की वो अपने जीवनकाल में , अपनी  मूर्ति की  जगह अवांगटित  हो जाने पर , उस  जगह का सौन्दर्यीकरण अपने तरीके से करवा सकते हैं जिससे  बाद में कोई दुर्गति न हो।        
        समस्या का हल निकल आया था पर  नेताओ की किस्मत इतनी खराब थोड़ी है जो मुझ जैसे आम व्यक्ति की बात सुने। न जाने उन्हें मेरे सुझावों के बारे में कैसे पता चल गया।  देश की एक कद्दावर   महिला नेता को लगा कि पता नहीं  उनकी मूर्ति लगेगी या नहीं, चमचे साथ देंगे या नहीं। उनका  दिमाग  ज्यादा तेजी से चला और उन्होंने और खुद की मूर्ति बाग मैं मेरे सुझाव के अनुसार ,लगाने का फैसला ले लिया   इससे दो फायदे हुए। मूर्ति लगने के साथ साथ काफी पैसा भी तिजोरी मै  आ गया और क्योंकि खर्चा ज्यादा नहीं हो रहा था , इसलिए  नेत्री ने अपने साथ साथ अपने परिवार  के सदस्यों की भी मूर्तियाँ भी पार्क में लगवा दी और  लक्ष्मी जी के वाहन  को भी जगह जगह खड़ा कर दिया | कद्दावर नेत्री अब स्वयं अपनी मूर्ति पर माला पहनाती है क्योंकि उन्हें विश्वास नहीं है की चमचे उनके बाद उनकी मूर्ति का भी ध्यान रखेंगे भी की नहीं |          

       मेरे सुझाव इतना प्रभावशाली होगा मैने कभी सोचा भी न था। सरकार के सिपहसालारों को थोड़ी राहत मिल गई और मूर्ति के लिए चौराहे का चयन कर लिया | 

      अभी इस  समस्या हल भी नहीं हुआ था कि  एक नेता जी को उनके पिताश्री ,पूर्व दिवंगत कद्दावर नेता की मूर्ति लगाने का ख्याल आया , जिनका   राजनीति में काफी वर्चस्व  था  |  चौराहो की खोजबीन शुरु हुई |  नोनिहाल पुत्र ने अपने चमचों को खोजने में लगाया पर कोई  चौराहा नजर नहीं आया  जहाँ पर मूर्ति लगायी जा  सके | हम भी इसी उधेड़बिन में थे कि कुछ नजर आ जाये, तो कुछ हमारे भी नंबर बन जायें | पर दिमाग इतना खाली हो गया था कि उसमे भूंसा भी नहीं  बचा था | 
        मानना पड़ेगा  नेता जी के चमचों को,  जिनका  दिमाग चल ही गया  और एक चौराहा खोज निकाला |  चौराहे पर  क्रन्तिकारी चंद्रशेखर आजाद  की छोटी अदना सी मूर्ति लगी  थी जिसे देखकर वहां से गुजरते हर राहगीर का  मस्तक आजादी के इस वीर क्रन्तिकारी के लिए झुक जाता था। पर हमारे देश मैं नेताओं  को यह ग़लतफ़हमी है कि आजादी नेताओ के त्याग से मिली न की क्रन्तिकारी के आंदोलनों से और  ऐसे क्रन्तिकारी की मूर्ति का  शहर के मुख्य चौराहे पर होना उन्हें सही नहीं लगा। उसे हटा कर अपने नेता की मूर्ति लगवा दी।  पर विपक्ष भी कोई कमजोर नहीं था। आंदोलन कर उसे  हटवा दिया और उचित जगह की खोज में सब फिर जुट गए ।   
इसी बीच  मेरे मन में एक धांसू  विचार आया जिससे मूर्ति के साथ साथ बेरोजगारी की समस्या का भी हल निकल जायेगा।  आप सब पाठक मेरे अपने हैं इसलिए  सरकार या नेताओ को बताने से पहले ,आप से ही साझा करता हूँ।  मेरे विचार से यदि मूर्ति पर पैसा बर्बाद करने के बजाये यदि बेरोजगारो को मौका दिया जाये तो बहुत अच्छा होगा।  हर मूर्ति की जगह,  जरूरतमंद नेता का भेष धारण कर आठ आठ घंटे की शिफ्ट में मूर्ति की जगह बेरोजगार  ले लेंगे और इस तरह उन्हें रोजगार मिल जायेगा  और सरकार को भी थोड़ी रहत भी मिल जाएगी। यदि मेरा सुझाव सरकार  को पसंद आया तो  इस सलाह के लिए में कोई  राशि नहीं लूँगा  बस मुझे भी उचित सम्मानित  जगह पर  खड़े होने का मौका मिले जिससे मेरी भी बेरोजगारी की समस्या का हल निकल जाये। आप लोगों को यदि मेरा प्रस्ताव सही लगे और आप में से जो भी इस योजना से जुड़ना  चाहें  मुझसे संपर्क कर सकते हैं आप के  लिए उचित स्थान की व्यवस्था  में करवा दूंगा ।  
इस योजना में आप सबका स्वागत  है  
   
   
  


सकारात्मक सोच

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